जन्म : 23 जुलाई,
मृत्यु : 27 फरवरी, 19311920-21 के वर्षों में वे गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए
गए, जहाँ उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का
नाम 'स्वतंत्रता', और जेल को उनका निवास बताया। उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपने स्वभाव के बहुत से
गुण अपने पिता पं० सीताराम तिवारी से प्राप्त किये। तिवारी जी साहसी, स्वाभिमानी, हठी और
वचन के पक्के थे। वे न दूसरों पर जुल्म कर सकते थे और न स्वयं जुल्म सहन कर सकते थे। भाँवरा में उन्हें एक सरकारी बगीचे में चौकीदारी का काम मिला हुआ था। भूखे भले ही बैठे रहें पर बगीचे से एक भी फल तोड़कर न तो स्वयं खाते थे और न ही किसी और को खाने देते थे। एक बार तहसीलदार ने बगीचे से फल तुड़वाना चाहे तो तिवारी जी बिना पैसे दिये फल तुड़वाने पर तहसीलदार से झगड़ा करने को तैयार हो गये। इसी जिद में उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। एक बार तिवारी जी की पत्नी पडोसी के यहाँ से नमक माँग लायीं इस पर तिवारी जी ने उन्हें बहुत डाँटा और इसकी सामूहिक सजा स्वरूप चार दिन तक परिवार में सबने बिना नमक के भोजन किया। ईमानदारी और स्वाभिमान के ये गुण बालक चन्द्रशेखर ने अपने पिता से विरासत में सीखे थे |
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