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सोमवार, 22 जून 2015

जनसंघ के संस्थापक डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी

जनसंघ के संस्थापक डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक प्रसिद्ध बंगाली परिवार में हुआ था
डॉ. क्ता के रूप में उभरे और शीघ्र ही 'हिन्दू महासभा' में शामिल हो गए। सन 1944 में वे इसके अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आजादी के समय  विभाजन का भीकड़ा विरोध किया।
   मुखर्जी चाहते थे कि हिन्दू महासभा मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में 1921 में प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने 1923 में एम.ए. और 1924में बी.एल. किया। वे 1923 में ही सीनेट के सदस्य बन गये थे। उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद कलकता उच्च न्यायालय में एडवोकेट के रूप में अपना नाम दर्ज कराया। बाद में वे सन 1926 में 'लिंकन्स इन' में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चले गए और 1927 में बैरिस्टर बन गए।डॉ. मुखर्जी तैंतीस वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय में विश्व के सबसे कम उम्र के कुलपति बनाये गए थे। इस पद को उनके पिता भी सुशोभित कर चुके थे।
 बाद में  राष्ट्रीय एकात्मता एवं अखण्डता के प्रति आगाध श्रद्धा ने  डॉ. मुखर्जी को राजनीति के समर में झोंक दिया। वेहिन्दुओं के प्रवको केवल हिन्दुओं तक ही सीमित न रखा जाए. मुखर्जी जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श करने के बाद 21 अक्तूबर1951 को दिल्ली में 'भारतीय जनसंघ' की नींव रखी और इसके पहले अध्यक्ष बने।
   विभजन के पश्चात  मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जोरदार नारा भी दिया कि- एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। अगस्त, 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि "या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।"
   जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को 11 मई, 1953 में शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया, क्योंकि उन दिनों कश्मीर में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को एक प्रकार से पासपोर्ट के समान एक परमिट लेना पडता था और डॉ. मुखर्जी बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर चले गए थे, जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया। वहाँ गिरफ्तार होने के कुछ दिन बाद ही 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु का खुलासा आज तक नहीं हो सका है। भारत की अखण्डता के लिए आज़ाद भारत में यह पहला बलिदान था। इसका परिणाम यह हुआ कि शेख़ अब्दुल्ला हटा दिये गए । 'धारा 370' के बावजूद कश्मीर आज भारत का अभिन्न अंग बना हुआ है। इसका सर्वाधिक श्रेय डॉ. मुखर्जी को ही दिया जाता है।

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