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शनिवार, 21 जून 2014

रेल किराया वृद्धि कड़वी दवा : रेलवे की व्यवस्थाओं व् सुविधाओं के विस्तार के लिए पीनी ही पड़ेगी ।

भारतीय रेल पिछले कुछ वर्षो से घाटे में चल रही है। सिर्फ एक ही रास्ता है कि रेलवे की सुविधाओं का उपयोग करने वाले भुगतान करें तभी भारतीय रेल पिछले कुछ वर्षो से घाटे में चल रही है। सिर्फ एक ही रास्ता है कि रेलवे की सुविधाओं का उपयोग करने वाले भुगतान करें तभी रेल चल सकती है। पिछले कुछ वर्षों से यात्री सेवाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई माल भाड़े से की जाती रही  है,इस कारण  माल भाडे पर भी काफी  दबाव बन गया है। यात्री  किराया वं मालभाड़ों में यह वृद्धि ईधन समायोजन घटक (एफएसी) की वृद्धि को मिलाकर है। पांच फरवरी को जब तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार सत्ता में थी तब रेलवे बोर्ड ने माल भाडे में पांच प्रतिशत और यात्री किराए में 10 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव किया था। यह प्रस्ताव रेलवे के माल भाडे और यात्री किराए को तर्कसंगत बनाने के लिए किया गया था और माले भाडे में एक अपे्रल से तथा यात्री किराए में एक मई से बढ़ोत्तरी होनी थी।तब तक अंतरिम बजट भी नहीं आया था लेकिन, ऎसी उम्मीद की जा रही थी कि एक मई तक आम चुनाव संपन्न हो जाएंगे। रेलवे के इस प्रस्ताव में कहा गया था कि इस वृद्धि से उसे 7 हजार 900 करोड़ रूपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा। इस निर्णय को लेकर तत्कालीन रेल मंत्री मलिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से 11 फरवरी को भेंट की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस वृद्धि को मंजूरी दे दी थी और सुझाव दिया था कि माल भाड़ा और यात्री किराया वृद्धि को एक मई से लागू किया जाना चाहिए।
  रेलवे बोर्ड ने आम चुनाव परिणामों के आने के दिन 16 मई की शाम को किराया वृद्धि की घोषणा की थी। हालांकि, देर शाम तत्कालीन रेल मंत्री ने आम चुनाव में संप्रग की हार के बाद इस वृद्धि को स्थगित करने के लिए कहा। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री और रेल मंत्री के निर्णय को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के रेल मंत्री एस. सदानंद गौड़ा ने सिर्फ इसे लागू किया है।
भारतीय रेल आम लोगों का चाहे सबसे बड़ा सहारा हो लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर, परिचालन एवं यात्री सुविधाओं में उम्मीद के अनुरूप सुभारतीय रेल पिछले कुछ वर्षो से घाटे में चल रही है। सिर्फ एक ही रास्ता है कि रेलवे की सुविधाओं का उपयोग करने वाले भुगतान करें तभी भारतीय रेल पिछले कुछ वर्षो से घाटे में चल रही है। सिर्फ एक ही रास्ता है कि रेलवे की सुविधाओं का उपयोग करने वाले भुगतान करें तभी रेल चल सकती है। पिछले कुछ वर्षों से यात्री सेवाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई माल भाड़े से की जाती रही  है,इस कारण  माल भाडे पर भी काफी  दबाव बन गया है। यात्री  किराया वं मालभाड़ों में यह वृद्धि ईधन समायोजन घटक (एफएसी) की वृद्धि को मिलाकर है। पांच फरवरी को जब तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार सत्ता में थी तब रेलवे बोर्ड ने माल भाडे में पांच प्रतिशत और यात्री किराए में 10 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव किया था। यह प्रस्ताव रेलवे के माल भाडे और यात्री किराए को तर्कसंगत बनाने के लिए किया गया था और माले भाडे में एक अपे्रल से तथा यात्री किराए में एक मई से बढ़ोत्तरी होनी थी।तब तक अंतरिम बजट भी नहीं आया था लेकिन, ऎसी उम्मीद की जा रही थी कि एक मई तक आम चुनाव संपन्न हो जाएंगे। रेलवे के इस प्रस्ताव में कहा गया था कि इस वृद्धि से उसे 7 हजार 900 करोड़ रूपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा। इस निर्णय को लेकर तत्कालीन रेल मंत्री मलिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से 11 फरवरी को भेंट की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस वृद्धि को मंजूरी दे दी थी और सुझाव दिया था कि माल भाड़ा और यात्री किराया वृद्धि को एक मई से लागू किया जाना चाहिए।
  रेलवे बोर्ड ने आम चुनाव परिणामों के आने के दिन 16 मई की शाम को किराया वृद्धि की घोषणा की थी। हालांकि, देर शाम तत्कालीन रेल मंत्री ने आम चुनाव में संप्रग की हार के बाद इस वृद्धि को स्थगित करने के लिए कहा। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री और रेल मंत्री के निर्णय को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के रेल मंत्री एस. सदानंद गौड़ा ने सिर्फ इसे लागू किया है।
भारतीय रेल आम लोगों का चाहे सबसे बड़ा सहारा हो लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर, परिचालन एवं यात्री सुविधाओं में उम्मीद के अनुरूप सुधार नहीं हो पाया है।  आजादी के बाद 67 वर्षों में हम केवल 11 हजार किलोमीटर रेल नेटवर्क का ही निर्माण कर सके हैं।
करीब 160 साल पहले शुरू की गई रेल सेवा आज पूरे भारत की जीवन रेखा बन गई है। आज करीब 16 लाख कर्मचारियों और 7 हजार से अधिक स्टेशनों के साथ यह विश्व की चौथी सबसे बड़ी रेल सेवा बन गई है। भारतीय रेल प्रतिदिन 11 हजार ट्रेनों का परिचालन करती है जो करीब 65 हजार किलोमीटर रेल मार्ग पर दौड़ती है। आज ट्रेन की सवारी रोजाना ढ़ाई करोड़ से अधिक लोग कर रहे हैं।ऐसी स्थिति  इन यात्रियों को सुविधा व् सुरक्षा मुहैया कराने के लिये ज्यादा उपाय व् संसाधन उपलब्ध करवाने होंगे,और यह सब काम तभी हो  सकेंगे, जब हमारा आर्थिक तंत्र पूर्ण स्वस्थ होगा। बीमार अर्थतंत्र रेलवे को भी नाकारा, सुविधाहीन व् असुरक्षित  देगा।इन सब बातों के  मद्देनजर रेल मंत्री ने कठिन, लेकिन सही निर्णय लिया है। घाटे में चलने वाली रेलवे घटिया सेवा देगी। उसके पास बिल भुगतान के लिए भी संसाधन नहीं होगा। हमे सोचना  है कि हमे  विश्व स्तरीय रेल सेवाएं चाहिए या इसे जीर्णशीर्ण बीमार हाल में रहने दिया जाए। बीमारी का  इलाज दवा  से ही होता है  औ हमें यह कड़वी दवा रेलवे की व्यवस्थाओं व् सुविधाओं के विस्तार के लिए पीनी ही पड़ेगी  ।  नहीं हो पाया है।  आजादी के बाद 67 वर्षों में हम केवल 11 हजार किलोमीटर रेल नेटवर्क का ही निर्माण कर सके हैं।
करीब 160 साल पहले शुरू की गई रेल सेवा आज पूरे भारत की जीवन रेखा बन गई है। आज करीब 16 लाख कर्मचारियों और 7 हजार से अधिक स्टेशनों के साथ यह विश्व की चौथी सबसे बड़ी रेल सेवा बन गई है। भारतीय रेल प्रतिदिन 11 हजार ट्रेनों का परिचालन करती है जो करीब 65 हजार किलोमीटर रेल मार्ग पर दौड़ती है। आज ट्रेन की सवारी रोजाना ढ़ाई करोड़ से अधिक लोग कर रहे हैं।ऐसी स्थिति  इन यात्रियों को सुविधा व् सुरक्षा मुहैया कराने के लिये ज्यादा उपाय व् संसाधन उपलब्ध करवाने होंगे,और यह सब काम तभी हो  सकेंगे, जब हमारा आर्थिक तंत्र पूर्ण स्वस्थ होगा। बीमार अर्थतंत्र रेलवे को भी नाकारा, सुविधाहीन व् असुरक्षित  देगा।इन सब बातों के  मद्देनजर रेल मंत्री ने कठिन, लेकिन सही निर्णय लिया है। घाटे में चलने वाली रेलवे घटिया सेवा देगी। उसके पास बिल भुगतान के लिए भी संसाधन नहीं होगा। हमे सोचना  है कि हमे  विश्व स्तरीय रेल सेवाएं चाहिए या इसे जीर्णशीर्ण बीमार हाल में रहने दिया जाए। बीमारी का  इलाज दवा  से ही होता है  औभारतीय रेल पिछले कुछ वर्षो से घाटे में चल रही है। सिर्फ एक ही रास्ता है कि रेलवे की सुविधाओं का उपयोग करने वाले भुगतान करें तभी भारतीय रेल पिछले कुछ वर्षो से घाटे में चल रही है। सिर्फ एक ही रास्ता है कि रेलवे की सुविधाओं का उपयोग करने वाले भुगतान करें तभी रेल चल सकती है। पिछले कुछ वर्षों से यात्री सेवाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई माल भाड़े से की जाती रही  है,इस कारण  माल भाडे पर भी काफी  दबाव बन गया है। यात्री  किराया वं मालभाड़ों में यह वृद्धि ईधन समायोजन घटक (एफएसी) की वृद्धि को मिलाकर है। पांच फरवरी को जब तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार सत्ता में थी तब रेलवे बोर्ड ने माल भाडे में पांच प्रतिशत और यात्री किराए में 10 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव किया था। यह प्रस्ताव रेलवे के माल भाडे और यात्री किराए को तर्कसंगत बनाने के लिए किया गया था और माले भाडे में एक अपे्रल से तथा यात्री किराए में एक मई से बढ़ोत्तरी होनी थी।तब तक अंतरिम बजट भी नहीं आया था लेकिन, ऎसी उम्मीद की जा रही थी कि एक मई तक आम चुनाव संपन्न हो जाएंगे। रेलवे के इस प्रस्ताव में कहा गया था कि इस वृद्धि से उसे 7 हजार 900 करोड़ रूपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा। इस निर्णय को लेकर तत्कालीन रेल मंत्री मलिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से 11 फरवरी को भेंट की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस वृद्धि को मंजूरी दे दी थी और सुझाव दिया था कि माल भाड़ा और यात्री किराया वृद्धि को एक मई से लागू किया जाना चाहिए।
  रेलवे बोर्ड ने आम चुनाव परिणामों के आने के दिन 16 मई की शाम को किराया वृद्धि की घोषणा की थी। हालांकि, देर शाम तत्कालीन रेल मंत्री ने आम चुनाव में संप्रग की हार के बाद इस वृद्धि को स्थगित करने के लिए कहा। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री और रेल मंत्री के निर्णय को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के रेल मंत्री एस. सदानंद गौड़ा ने सिर्फ इसे लागू किया है।
भारतीय रेल आम लोगों का चाहे सबसे बड़ा सहारा हो लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर, परिचालन एवं यात्री सुविधाओं में उम्मीद के अनुरूप सुधार नहीं हो पाया है।  आजादी के बाद 67 वर्षों में हम केवल 11 हजार किलोमीटर रेल नेटवर्क का ही निर्माण कर सके हैं।
करीब 160 साल पहले शुरू की गई रेल सेवा आज पूरे भारत की जीवन रेखा बन गई है। आज करीब 16 लाख कर्मचारियों और 7 हजार से अधिक स्टेशनों के साथ यह विश्व की चौथी सबसे बड़ी रेल सेवा बन गई है। भारतीय रेल प्रतिदिन 11 हजार ट्रेनों का परिचालन करती है जो करीब 65 हजार किलोमीटर रेल मार्ग पर दौड़ती है। आज ट्रेन की सवारी रोजाना ढ़ाई करोड़ से अधिक लोग कर रहे हैं।ऐसी स्थिति  इन यात्रियों को सुविधा व् सुरक्षा मुहैया कराने के लिये ज्यादा उपाय व् संसाधन उपलब्ध करवाने होंगे,और यह सब काम तभी हो  सकेंगे, जब हमारा आर्थिक तंत्र पूर्ण स्वस्थ होगा। बीमार अर्थतंत्र रेलवे को भी नाकारा, सुविधाहीन व् असुरक्षित  देगा।इन सब बातों के  मद्देनजर रेल मंत्री ने कठिन, लेकिन सही निर्णय लिया है। घाटे में चलने वाली रेलवे घटिया सेवा देगी। उसके पास बिल भुगतान के लिए भी संसाधन नहीं होगा। हमे सोचना  है कि हमे  विश्व स्तरीय रेल सेवाएं चाहिए या इसे जीर्णशीर्ण बीमार हाल में रहने दिया जाए। बीमारी का  इलाज दवा  से ही होता है  औ हमें यह कड़वी दवा रेलवे की व्यवस्थाओं व् सुविधाओं के विस्तार के लिए पीनी ही पड़ेगी  । 

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